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भटकती आत्मा भाग - 14



          भटकती आत्मा भाग   –14 

जानकी एक तिपाई पर बैठी हुई मनकू के मस्तक को सहला रही थी। अभी तक दोनों में कुछ भी बात नहीं हुई थी। दो बार मनकू ने पानी मांगा था और जानकी ने यंत्रवत उसकी जल-पिपाशा शांत की थी। एक बार जबरदस्ती जानकी ने कुछ फल उसके मुंह में डाल दिया था। कुछ ना-नूकुर करने के बाद उसने बेमन से खा लिया। उसका दिल व्यग्र हो रहा था। भूलने पर भी मैगनोलिया उसके मानस पटल पर छा जाती थी | मुख पर विषाद की रेखाएं अंकित थीं। मनकू की आंतरिक स्थिति को अनुभव करती हुई जानकी का दिल दुखी हो रहा था। कोई भी स्त्री अपने प्रेम की प्रतिद्वंदी को बर्दाश्त नहीं कर सकती। जानकी भला यह कैसे सहन करती ? हौले से मनकू के हाथ को अपने हाथ में लेती हुई जानकी ने साहस जुटाकर कहा -   "मनकू"
  आंय, तुमने कुछ कहा जानकी ?
  " तुमको उस अंग्रेज छोरी से बहुत प्यार हो गया है क्या"|
"हां जानकी अपने प्राणों से भी ज्यादा मैं उसको चाहता हूं"|
  "और मुझको"?
  "तुमको,हां तुमको भी मैं बहुत चाहता हूं परन्तु इस चाहत में अंतर है जानकी"|
  " मैं समझी नहीं"|
"तुमको मैंने सदा अपनी छोटी बहन के समान चाहा है,और मैगनोलिया को प्रेयसी का दर्जा देता हूं"|
  "यह तुम क्या कह रहे हो मनकू"- आंसू बहाती हुई जानकी ने पूछा।
 "हाँ जानकी ! मेरी बहन नहीं है,इसलिए मैंने तुम्हें सदा अपनी बहन समझा है। शायद तुमने मेरे स्नेह को गलत समझ लिया। मानता हूं हमारे समाज में एक लड़का और लड़की जब मिलते हैं तो वह प्रेमी-प्रेमिका ही होते हैं। परन्तु जानकी ! मेरे लिए तुम मेरी बहन हो,मेरी प्रेमिका कभी नहीं हो सकती l अगर मैगनोलिया मेरे जीवन में नहीं आती तब भी मैं तुम्हें प्रेयसी का दर्जा नहीं देता। ऐसा सोचना भी मेरे लिए पाप होगा"|
जानकी अपने दिल पर पत्थर सा रखती मनकू की बातें सुन रही थी | अब उसको अपने पापी मन पर झुंझलाहट सी हो रही थी | वह सोच रही थी कैसी अभागी है वह,जो अपने भाई के स्नेह को भी प्यार समझती रही | भाई हां जानकी को भी तो भाई नहीं है। वह हमेशा एक भाई के लिए तरसती रही है। उसे क्या पता था कि, मनकू जो उसका सहोदर भाई नहीं है तो क्या हुआ इससे,आखिर भाई तो वह बन ही सकता है। लेकिन उसका भी क्या दोष । यौवन की दहलीज पर पैर रखते सभी तरुणी सबसे अधिक महत्व पति के संबंध पर ही देती हैं,पति की कल्पनायें ही करती रहती हैं; इसीलिए उसने मनकू के दिल के अंदर झांकने की कभी कोशिश नहीं की। हमेशा एक तरफा प्यार जताती रही,उसकी सभी सखी सहेलियां भी तो उसे मनकू की प्रेयसी मानकर ही उससे छेड़छाड़ कर रही थीं। परंतु अब नहीं, अपने मन के कलुषित विचार को धो डालेगी वह ! अच्छा हुआ ! देर से ही सही उसने मनकू की भावना समझ लिया, भी देर आये दुरुस्त आए"|
जानकी को गंभीर देख कर मनकू ने प्रश्न किया -   "तुम्हें मेरी बातें बुरी लगीं क्या"?
   "नहीं मनकू, मैं तो सोच रही थी कि कैसा पाप अपने दिल में पाल रही थी मैं"।
    "हां जानकी तुम मेरी बहन हो,बहन ! और मैं तुम्हारा भाई -समझी"|
   "हां भैया लेकिन तुमने यह कैसा रोग पाल लिया है"|
यह प्रेम रोग है जानकी,इस पर किसी का बस नहीं चलता"|
   "लेकिन तुम उसका अंजाम तो जानते ही होगे"?
"हां जानता हूं, लेकिन क्या करूं दिल को कैसे समझाऊं"?
  "तुम दोनों कभी एक नहीं हो सकते भैया"|
  " यह भी जानता हूं,कलेक्टर साहब यह कभी नहीं चाहेंगे"|
   " फिर मेलजोल बढ़ाने से क्या फायदा"?
"दिल मानता नहीं फिर क्या करूं,अब तो यह हालत है कि मैं उसके बिना जिंदा नहीं रह सकता"|
" यह बहुत बुरा हुआ भैया"- कुछ सोचती हुई जानकी बोली।
" मैगनोलिया के नहीं प्राप्त होने पर मुझे कम से कम मौत तो अवश्य ही मिलेगी जानकी,मैं उसी में संतोष कर लूंगा"|
  मनकू के मुंह पर हाथ रखती हुई जानकी भाव विह्वल हो उठी। उसने कहा   -    "ऐसा मत बोलो भैया,भगवान न करे कि ऐसा कभी हो"|
अब दोनों के नेत्रों में आंसू छलक रहे थे | मुंह पर जैसे ताला लग गया था | दिल की पीड़ा आंसू बनकर पलकों से ढलक रहे थे | लेकिन यह आंसू मनकू के लिए जो अर्थ रखते थे,जानकी के लिए वह नहीं कुछ और ही। आंसू भी अपने गर्भ में अनेक अर्थ छुपाए रखता है।

             -    ×    -    ×    -

कई दिनों तक मैगनोलिया एकांत कमरे में शोक संतप्त पड़ी रही,अंत में कलेक्टर साहब ने हार मान ली | उन्होंने सोचा कि अभी मैगनोलिया नासमझ है जोर-जबरदस्ती करने पर बुरा परिणाम हो सकता है, इसलिए यह कदम जो उन्होंने उठाया है - ठीक नहीं है। क्यों न ऐसी परिस्थिति उत्पन्न की जाए जिससे मैगनोलिया खुद उस काले भारतीय से  घृणा करने लगे। यह काम धीरे-धीरे हो सकता है,अभी क्यों व्यर्थ में मैगनोलिया को विद्रोह के लिए परिस्थिति उपलब्ध की जाए। स्नेह का संबल लिया उन्होंने,प्यार से समझाया अपनी पुत्री को-  जिसका सार था दिन रात अस्पताल में रहने के कारण लोग तरह-तरह की आशंका करते हैं,और अफवाह फैलाते हैं | इसलिए मैगनोलिया को अस्पताल जाकर केवल देखभाल कर आ जाना चाहिए। ऐसा नहीं करेगी तो व्यर्थ में उसकी एवँ उसके पिता की बदनामी होगी। अतः बदनामी से बचने का मात्र एक उपाय है, मेलजोल कम कर देना |
भारी दिल से मैगनोलिया इस बात पर सहमत हो गई थी | पिता के स्नेह-पूर्वक समझाने पर कई दिनों के बाद आज उसने अपने शरीर पर ध्यान दिया। कई दिनों तक भूख हड़ताल पर बैठी थी, आज उसका भूख हड़ताल टूटा | फ्रेश होकर बाहर लॉन में आकर बैठ गई | कलेक्टर साहब ने प्रेम पूर्वक उससे कहा -   "यदि तुम अस्पताल जाना चाहती हो तो कुछ देर के लिए चली जाओ,परन्तु जल्दी ही लौट आना"|
मैगनोलिया मन ही मन प्रसन्न हो गई | वह शीघ्रता पूर्वक तैयार होने में जुट गई।  वह सोच रही थी पता नहीं कई दिनों से मनकू कैसे रह रहा होगा। उसकी क्या हालत होगी,अपनी मजबूरी को वह कैसे उसे बताएगी | इससे उसको दु:ख ही तो होगा l नहीं,उसको वह नहीं बताएगी अपनी मजबूरी | कुछ भी बहाना बना देगी | 
उससे हमेशा मिलते रहने के लिए पिता की बातों से सहमत होना ही बुद्धिमानी है, नहीं तो पता नहीं क्रोध में आकर पापा क्या कर बैठें। हो सकता है मनकू को मार ही डालें। नहीं ऐसा कभी नहीं होने देगी वह। स्वयँ वह भी तो उसके  बिना जिंदा नहीं रह सकती है। ऐसा कोई भी काम वह नहीं करेगी जिससे उसके प्रेमी को नुकसान पहुंचे। उसके विचार-तरंग विश्रृंखलित हो गये क्योंकि पापा की आवाज उसके कानों में पड़  चुकी थी -  "डियर डॉटर तुम अभी तक  गई नहीं"?
  "हां पापा जाती हूं" -कहती हुई मैगनोलिया गेट की तरफ जाने लगी |
  "जल्दी लौट आना क्योंकि हमें क्लब अटेंड करना है,तुम्हें भी मेरे साथ जाना होगा"|
"अच्छा पापा" कहती हुई मैगनोलिया गेट से बाहर हो गई |

   क्रमशः 

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1 Comments

Punam verma

13-Aug-2023 09:37 AM

Nice

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